Page 252 - Cascade I SHPS School Magazine 2024
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अंधेरा श्या सिवन
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XII B
बे वजाह ही बदनाम ह अधरा, ै अधर म एक सकन ह, ै
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रोशनी ज़्ादा मनहूस लगती ह I
रोशनी की तरह नहीं,
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अधरा नींद मकम्मल करती ह, ै जो आख खलत ही बोल, े
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तो रोशनी आखों म घसकर चभती ह ! हाय! मरा एक ख्ाब टट गया I
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रोशनी म सब कदखत तो ह, ै उजाला करन क अब तरीक कई ह, ैं
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मगर कोई जज़्बात नज़र नहीं आत! े रोशनी भी कबकन लगी बाज़ारों म, ें
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नज़र आता कसि वही एक अधरा ही ह, ै
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जो मखौटों क पीछ अपन चहर छपात ... जो कभी कबकता नहीं I
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रोशनी म खल कर हसते तो ह, ै अधरा कभी सवाल नहीं करता,
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लककन अगर ढढ़न जाओ, न ककसी पर उगली उठाता,
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तो एक अधरा ही ह जो, भटक भी जाए तो
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हसी क पीछ की उदासी को पहचानता ह l चपचाप रास्ता कदखाता ह I
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रोशनी म आस बकझझक बहत नहीं, अधरा आईना ह, ै
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कोई दख न ल इस रोशनी म, ें कोई नकाब नहीं लगाना पिता,
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हम ज़ख्म सबस छपात ह, ैं गौर स दखो तम,
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नहीं जात ककसी की नज़रों तक I ककतना सा़ि ह यह अधरा I
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यह ज़ख्म, यह दद ह रहता इस अधर म, ें
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बख़ौ़ि, बपरवाह, आज़ाद I
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बदन प लग खरोज शायद ही कदखत, े
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दीवारों प लगी वह दाग छपी रहती ह, ै
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अधर म आस छपान नहीं पित, े
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अधर म परछाई नहीं कदखती,
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तो हूबहू खद नज़र आत ह, ैं
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अधरा तन्हाई का साथ ह I
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