Page 249 - Cascade I SHPS School Magazine 2024
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एक  साधारण-सा  उदाहरण  ल      े

                                           ें
            लीकजए। जब सोहन कक्ा 10 वीं म था
                                     ें
                           े
            तो मा न कहा, "बटा जीवन म बस 3 ही
                 ँ
                   े
                                ै
                      े
                        े
            साल कायद स पढ़ना ह। 10 वीं, 11 वीं                       अदिदि ए मेेंडा
                                   े
            और 12 वीं । डटकर पढ़ ल किर कज़दगी                         IX  A
                 े
                        े
            म मज़ ही मज़।'' कदलों कदमाग स हम भी
             ें
                                       े
              ु
            जि गए, पररणाम 98% ।  मा  किर बोली,          बचपन की बातें
                                    ँ
               े
            " बटा अगर IIT  कनकल आए तो कज़दगी
                              ू
              ं
            कजगालाला।" हमन परा दम लगा कदया,
                            े
            IIT भी कनकल गया। अब किर बवाल -
                  े
            मोहल् का एक लिका IAS बन गया।
            मा किर हमारी तऱि पलटी और बोली -
              ँ
                       े
                     ै
              ु
            "तम  तो  वस  ही  इस  पररवार  क  चग-
                                        े
                                             े
                                           ं
            ज़ख़ान हो, तम्ह ककस बात का डर ? वह
                         ें
                       ु
                ू
            मामली-सा लिका अगर IAS बन सकता
            ह तो तम क्ों नहीं ?” हमन धीम स हामी
             ै
                                         े
                                       े
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                    ू
            भरी, बाबजी क पर छए और बोल- "हम
                      ैं
                                 े
            चल  रह  ह  कदल्ी  ़ितह  करकर  ही
                   े
                 े
            आएग। IAS भी बन गए। अब शादी हो
               ं
                        े
            गई। किर बच् हुए। अब बच्ों की कज़दगी
                 े
                            े
                       ं
            बनान और सवारन क सघर् शरू।''                         भी न छोिना बचपन का साथ
                                   ्त
                                      ु
                             े
                                ं
                 े
                दखा जाए तो जीवन कभी भी कबना              क  बचपन की होती है कु छ अलग ही बात
              ं
                                        े
                ्त
                  े
            सघर् क होता नहीं। बस समय क साथ               न कोई गम न कोई मक्किल
                                                                           ु
                  े
                ्त
                                     ैं
                              े
            सघर् क रूप बदलत जात ह | तो जब                आईन स भी सा़ि होता ह हमारा कदल ৷
                                   े
              ं
                                                              े
                                                                े
                                                                              ै
            सघर्  खत्म  ही  नहीं  होता  ह  तो  क्ों  न
              ं
                ्त
                                    ै
                        ं
                  े
                           ्त
            मज़  लकर  सघर्  ककया  जाए?  कजसन  े           जब हो जात ह हम बि
               े
                                                                   े
                                                                            े
                                                                     ैं
                                                                     े
                                                          ु
                           ं
            भी मज़ा लकर सघर् ककया उन सब न     े           मक्किल हमार साथ बढ़ जात े
                                                                ें
                              ्त
                     े
                                                                े
                                                                                ै
                                                                                  ु
                                                          े
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             ु
            दकनया पर राज ककया। जीवन का पयाय-             चहरों स मस्ान हो जाती ह गम
                                           ्त
                                                              े
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                                                                ैं
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                                                                   ें
            वाची ह सघर्। जब राम, कष्ण, मोहम्मद           कमलत ह हम सब तरह क गम ৷
                                                                              े
                  ै
                                          े
            और ईसा मसीहा, जीवन क सघर्  स बच
                                  े
                                       ्त
                                    ं
                          ं
                                                              े
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                           ै
            नहीं पाए तो तम कस बच पाओग? सघर्  ्त          होत थ जब हम सब छोट  े
                                           ं
                                                                    े
                                                                  े
                                                                                          े
                                                                                              े
            कजतना बिा होगा जीवन म कामयाबी भी             यही सोचत थ कक क्ों जल्ी हम न बि होत ?
                                  ें
                                                                         ैं
                                                                       े
                                                                                े
            उतनी ही बिी होगी, इसकलए सघर् को              और जब हो जात ह हम बि
                                       ं
                                          ्त
                                                                           े
                                                                                     े
            अपना साथी बना लो। इसस घबराना नहीं            उसी बचपन को खोन पर रो पित हम ৷
                                   े
            ह बक्कि इसस टकराना सीखो। सघर् को
                                        ं
                                          ्त
             ै
                        े
                                                                 ै
                                           ं
            अपना हमस़िर बना लो। कजसन भी सघर्  ्त         इसकलए ह हमारा यह कहना
                                      े
                                                             े
                                                                                    ै
                                                                                        ं
                                                                    ें
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            को खशी क साथ अपना कलया जीवन उसक              अपन कदल म अपना बचपन सदव कज़दा रखना ৷
                 ु
                                    े
            कलए मस्ती भरा बन गया। उस न तो भाग्य          कभी न छोिना बचपन का साथ
                                                                        ै
                                                                          ु
            हरा पाएगा न भगवान ।                          बचपन की होती ह कछ अलग ही बात ৷
                                                                                             Cascade        249
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