Page 257 - Cascade I SHPS School Magazine 2024
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गममी की





                                                     छ ु टटियों की
                                   ू
                                      छा
                             गीदि मेर्ाना ढाल
                             VIII A
                                                     मेरी सुनहरी याद                                   ें













































            मे  री गकमयों की छकटिया अप्रल १३ को शरू हुई। मनन पहल  े  पहुचन क कलए नाव म जाना था। पर जब तक हम लोग  ू
                                 ँ
                                                                      े
                                                                        े
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                                                                   ँ
                                                                                    ें
                                                                   ँ
                                                                                         ं
                                                                                    ं
                तीन हफ़् ओनझर (ओकडशा) म अपन बि पापा क
                                                                 पहुच गए तब तक काउटर बद हो गया था। जगल म भाल
                                                                                                       ं
                                                 े
                                                    े
                                                           े
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                                                                                                            ें
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                                          ँ
            घर म कबताय। म हर रोज़ साढ़ पाच बज उठकर अपन       े    और हाथी की मकतया बनायी गयी थीं। झरन स पानी कगरन  े
                                                                                                     े
                                                                              ू
                                                                                                       े
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                                                                                  ँ
                                                                                                े
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            स्ास्थ क कलए अपन पापा और मम्मी क साथ थोिी दर         का  दृश्य बहुत मनमोहक था। हमन ढर सारी िोटो खींची।
                                                                                              े
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                                                                                                              ं
                                                                         ैं
                                                                                 ँ
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                                                                                              ँ
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                                                                               े
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            टहलन क कलए जाती थी। टहलन क दौरान गाव क लोगों           जब म अपन गाव गयी थी वहा बहुत गमती थी। पखा
                                                           े
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                                                                                 े
                                                                               े
                                                                      ू
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            का रहन-सहन दखती थी । म  खत म कदद और उसक              और कलर लगान क बाद भी कोई असर नहीं पिता था।
                                            ें
                                                                    ँ
            िल तोिकर दोपहर को सब्ी बनाकर खाती थी। हर रोज़         यहा पर भी म सबह चलन क कलए नदी तट पर जाती थी।
              ू
                                                                                        े
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                                                                              ु
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            लौटत समय विा और समोस खात हुए घर लौटती थी।            नदी  क  ककनार  लोग  परवल,  कमचती,  टमाटर,  पोई  साग
                 े
                                                                                         े
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               आखरी दो कदन म एक झरना दखन क कलए गयी थी।           उगा  रह  थ।  मर  नानाजी  मर  कलए  विा  और  मटर  का
                                                                              े
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            वहा बहुत सार पि-पौध थ। झरन क पास एक तालाब था,        करी नाश् क कलए लात थ। म हर रोज़ एक पनकटग बनाती
                                                                                       े
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                                                                           े
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             वहा कशवजी की एक बिी मकत थी। उस मकत क पास            थी।  मरी  नानी हर रोज़ मर कलए तरह-तरह क पकवान
                                      ू
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                                                                                             Cascade         257
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